Mohit Chauhan
Jo Bhi Main
जो भी मैं कहना चाहूं
बर्बाद करे अल्फ़ाज़ मेरे
अल्फ़ाज़ मेरे

कभी मुझे लगे की जैसे
सारा ही ये जहाँ है जादू
जो है भी और नही भी है ये
फ़िज़ा, घटा, हवा, बहारें
मुझे करे इशारे ये
कैसे कहूँ?
कहानी मैं इनकी

जो भी मैं कहना चाहूं
बर्बाद करे अल्फ़ाज़ मेरे
अल्फ़ाज़ मेरे

मैने ये भी सोचा है अक्सर
तू भी मैं भी सभी है शीशे
खुधी को हम सभी में देखें
नहीं हूँ मैं हूँ मैं तो फिर भी
सही ग़लत, तुम्हारा मैं
मुझे पाना, पाना है खुद को

जो भी मैं कहना चाहूं
बर्बाद करे अल्फ़ाज़ मेरे
अल्फ़ाज़ मेरे